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Why drinking is a great sin.

 Today as I was watching Q&A  session with a famous spiritual guru on television, a middle aged man from the audience asked, "Guru ji, you always counsel us to shun meat & liquor as these are "mahapaaps" or great sins. I can understand that meat eating involves butchering innocent animals but how come liquor is called a "mahapaap". No killing is done in breweries." Clearly the guru seemed all at sea with the poser. He was not able to give a satisfactory answer.  Some time back while addressing a  motley gathering of spiritual seekers, a young college going lad asked me the same question.  During my college & university days, I was a hard drinker.  Later on I became an occasional drinker, then metamorphosed into a nondrinker when I started studying scriptures.  In Sri Bhagavad Gita, Lord Krishna has explicitly told Arjuna in the Shloka  "सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो" that he is present in the hearts of all living beings.  In other...

ज़िंदगी का "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन

महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया, "हे युधिष्ठिर, बताओ इस संसार में सबसे अजीब बात क्या है?"  परमज्ञानी युधिष्ठिर ने जवाब दिया, "हे यक्ष, यह संसार मृत्युलोक है। यहाँ हर चीज़ नाश्वान है। हर किसी को एक निश्चित दिन मृत्यु का ग्रास अवश्य बनना है‌। हर शख़्स दूसरों की मौतें देख रहा है पर उसे यह वहम है कि वह कभी नहीं मरेगा। यही सबसे अजीब बात है।"  हाल ही में हुई दर्दनाक वारदातें हमें फिर से आगाह करती है कि मौत ना उम्र देखती है, ना ज़ात, ना रूतबा।  जिस्म की मौत अटल सत्य है। इसमे कोई शक नहीं है।  मेरे कई अज़ीज़ों ने मेरे सामने, मेरी ही बाहों में अपने शरीर छोड़े।  बेहद ज़रूरी यह जानना है कि रही-सही ज़िंदगी को सही तरीके से कैसे जिएं।  अर्थशास्त्र में एक शब्दावली है "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन"। इसका मतलब है संसाधनों का सबसे अच्छा, सबसे प्रभावी उपयोग करना ताकि लाभ ज़्यादा से ज़्यादा प्राप्त हो और नुकसान कम से कम।  ठीक ऐसे ही हमें ज़िंदगी का भी "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन" करना चाहिए ताकि हमें ज़्यादा से ज़्यादा नफ़ा मिल सके।  कुछ लोगों को यह ग़लत-फ़हमी है कि जिं...

मग़रूरी बे-बुनियाद है

 ◦•●◉✿   मग़रूरी बे-बुनियाद है   ✿◉●•◦ अमूमन दो चीज़ें पर मै लोगों से, ख़ासकर अपने अज़ीज़ों से बहस नहीं करता : पॉलिटिक्स और धर्म।  दोनों ही विवाद पैदा करती है, दोस्ती को दुश्मनी में तब्दील कर देती है।  लेकिन कई दफ़ा हालात मजबूर कर देते है कि मैं हकीकत से रूबरू करवाऊं।  कल अचानक मेरी मुलाकात एक जानकार, जो एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी है, से मुद्दत बाद हुई।  बातचीत के दौरान उन्होंने शेखी बघारी, "शर्मा जी, मेरी समझ में नहीं आता कि लोग अपना कीमती समय पूजा-पाठ करने में क्यों बरबाद करते हैं। मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता, न ही मैंने कभी किसी पूजा-पाठ स्थल पर जाकर इबादत की है। फिर भी मेरे पास ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के लिए जरूरी हर चीज़ मौजूद है। मैंने ये सब अपनी कोशिशो से हासिल किया है। मैं "सेल्फ मेड मैन" हूँ।" उन्होंने अपने सीने को फुला कर कहा  मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा।  लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने फिर वही मुद्दा छेड़ दिया, "शर्मा जी, सर्वोच्च शक्ति नाम की कोई चीज़ नहीं होती। यह मूर्खों की जमात द्वारा बनाया गया वहम है। क्या आप तथाकथ...

तुममे पिघल कर तरना चाहता हूँ

 ✿ तुममे पिघल कर तरना चाहता हूँ ✿ ना मेरा आकार  ना मुझमें विकार  एक शरर हूँ मैं कब से बेक़रार   सफ़र दर सफ़र  कर रहा हूँ  जिस्म हज़ारों  धर रहा हूँ   शक्लें कई कई  बदल रहा हूँ   अब अंजाम ए सफ़र  चाहता हूँ  थक गया हूँ थमना  चाहता हूँ  तुममे पिघल कर तरना  चाहता हूँ  शरर : चिंगारी  अंजाम ए सफ़र : सफ़र का अंत  ~ संजय गार्गीश ~

पर्याप्तता नहीं सन्तुष्टा प्राप्त करें

  एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा होने की वजह से मुझे यह लगता था कि बेशुमार पैसा और पद बेहद ज़रूरी है क्योंकि इनसे हर ख्वाहिश पूरी की जा सकती है। पैसे और पद से ही हर परेशानी से निजात मुमकिन है।  इसलिए इन्हें पाने के लिए मैं मुसलसल कोशिश करता रहता था।  लेकिन जैसे-जैसे मैं सफल लोगों से मिलता गया, मुझे एहसास हुआ कि वे भी मुझसे अलग नहीं थे।  प्रचुर पैसे और बेहतरीन ओहदे पाने के बावजूद भी तकरीबन सभी ज़्यादा से ज़्यादा पाने की होड़ में लगे थे।  पैसा और पद ही उनकी परेशानी की वजह बन रहे थे!  मैंने महसूस किया कि अमूमन कामयाब लोग बीमार है। वे अपनी असीम हवस के बोझ से हरदम थके-थके रहते है।  बेशुमार होने के बावजूद भी बेहद असंतुष्ट रहते है। इसीलिए अब मै पैसे, पद और प्रतिष्ठा से प्रभावित नहीं होता।  मैं अब ब्रांडेड कपड़ों, मोबाइल फोन या अन्य ब्रांडेड वस्तुओं के आधार पर लोगों का मूल्यांकन नहीं करता हूँ।  मेरे मुताबिक़ व्यक्ति अपने विचारों, अपने व्यवहार द्धारा ही पहचाना जा सकता है, ब्रांडेड वस्तुओं से नहीं।  अब सवाल यह उठाया जाता है कि पैसा और ख्वाहिशें कित...

दोस्त यही जिंदगानी है

  बस इतनी सी कहानी है  ये दुनिया बहता पानी है।  जो चीज़ तूने सच मानी है  सच पूछो सब फ़ानी है।  चल सूरज की बात करें  रात सियाह बितानी है।  वज़ह हर वैराग की  पीड़ा कोई पुरानी है।  इमारत टूटी सजानी है दोस्त यही ज़िंदगानी है।  फ़ानी : नश्वर, सियाह : काला रंग  ~ संजय गार्गीश ~ 

क्या खोया क्या पाया

  क्या खोया क्या पाया  कुछ समझ ना आया।  चंद सांसों की ख़ातिर  जिंदगी को बेच आया।  खुदी को मिटा कर  मैंने ख़ुद को पाया।  कहीं और जाया जाए  जहाँ है देखा दिखाया।  मेरे ख़्याल और अल्फ़ाज़  बस यही मेरा सरमाया।  जब सब जगह वो समाया  कौन अपना कौन पराया।  खुदी : अहंकार, सरमाया : धन-दौलत ~ संजय गार्गीश ~