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Importance of human body.

While explaining the importance of human body to a motley bunch of spiritual seekers, I said, "Though human body is the dirtiest and most useless thing in this world, it is also the body that is most sought after.  Folks, my words may appear paradoxical to you."  "Exactly sir. Kindly elaborate." someone from the group quipped.  "You see, there are nine ways to enter human body, or for that matter most of the living beings' bodies.  These nine doors or openings of the body, also known as "Navdwara" are - two eyes, two ears, two nostrils, the mouth, the anus, and the genitalia.  Just observe. From all these nine openings only foul fluids and wastes flow out, nothing else!  In essence this body is nothing but a bag full of faeces and urine." I said.  "But sir, how can you say that human body is the most useless thing." said a middle aged bearded guy.  "Sir, human body is the most useless thing because even after death, the bodies

शायर

 कुछ हक़ीक़त थी कुछ अफ़साना था,  कुछ अपना था कुछ बेगाना था,  सब कुछ ही मगर मुझे सुनाना था।  सोतों को जगाना था,  रोतों को बहलाना था,  बहुतों को ढांढस बंधाना था।  अश्कों को अपने अपनाता हूँ,  लफ़्ज़ों से गमों को सजाता हूँ,  नग्में बना उन्हें गाता हूँ।  सुख-दुख खुद से ही मनाता हूँ,  कहाँ से कहाँ पहुँच जाता हूँ,  मैं शायर कहलाता हूँ।  ~ संजय गार्गीश ~ 

कुछ उम्मीदें कुछ आस पास रहे

  ◉✿ कुछ उम्मीदें कुछ आस पास रहे ✿◉ हाथ में देर तलक गिलास रहे,  जब यह दिल बहुत उदास रहे।  आज वोह याद बेहिसाब आए,  आज वोह मेरे आस-पास रहे।  उसका मिलना कुछ मुहाल नहीं,  उसके मिलने की बस प्यास रहे।  ना-उम्मीदी की स्याह रातों में,  कुछ उम्मीदें कुछ आस पास रहे।  हाथ में देर तलक गिलास रहे,  जब यह दिल बहुत उदास रहे।  मुहाल : मुश्किल, स्याह : काली  ~ संजय गार्गीश ~

कुछ दोहे

 सहरा ढूँढ़ता पानी और समंदर माँगे प्यास,  सब के दिल में आस है, सब के सब उदास।  मन के पीछे जो लगे, मंज़िल मिले ना मुक़ाम,  मन को साधा जिसने, दुनिया उसकी ग़ुलाम।  सागर और मिट्टी से, मेरा रिश्ता बड़ा है ख़ास,  सागर से उभरी लहर हूँ मैं, मिट्टी मेरा लिबास।  खोज में जिसकी भटक रहा, कर रहा प्रबल प्रयास,  वह ख़ुदा तुम्हारे दिल में है, वह ख़ुदा तुम्हारे पास।  सहरा : रेगिस्तान ~ संजय गार्गीश ~

चल उठ बिखरा घर संवार

पतझड़ हो या बहार,  सावन की या फिर फुहार,  मेरे मनवा मेरे यार,  कर हर मौसम से प्यार,  तेरे आसूॅंओं की धार,  तेरे दर्दों का दयार,  समझने को ना कोई तैयार,  मत रो तू ज़ार-ज़ार,  कर खुद पर ऐतबार,  चल उठ बिखरा घर संवार।  दयार : संसार  ~ संजय गार्गीश ~

Why good guys suffer?

 Some people leave lasting imprints on one's life, change one's perspective on life entirely.  While pursuing my post-graduation in Economics from Panjab University, Chandigarh, I often had my lunch at G.C. Chatterji Hall a.k.a Hostel Number 2.  Once while entering the hostel mess I saw an old hermit in ochre robes, sitting under the banyan tree.  He was chanting "Hare Krishna Mahamantra"  ecstatically.  There was an ethereal glow on his face.  Like a powerful magnet, his persona attracted me.  I went to him and asked, "Baba, would you like to have lunch with me?"  With a beatific smile, he said, "If Lord Krishna wishes so."  After the lunch, the monk blessed me and said, "Son, I'm in a quandary. Can you help me out?"  "Kindly let me know baba what can I do for you" I said while prostrating at his feet.  "Son, when I am awake, the world before my eyes fascinates me, appears to be real. But during my sleep, the world of

कुछ अशआर...

 दिल से मेरे निकल जाए अगर यह दहर,  पूरा हो जाए सफ़र मेरा मैं जाऊँगा ठहर।  ज़हन में है बैठा तेरे जिसे ढ़ूॅंढता इधर उधर,  सागर है वो ख़ामोश सा जिसकी है तू लहर।  सोचा है जब जब इस जहाँ के मुतअल्लिक,  हो जाता हूँ तब तब मै शर्मसार सर-ब-सर।  ना बस में है जीवन ना बस में है मरण,  समझे है ख़ुदा खुद को इंसान हर पहर।  जिंदगी सिर्फ़ फ़रेब है संजय, यकीन कर,  होती है जब शाम, किधर जाती है सहर?  दहर : दुनिया, मुतअल्लिक : बारे में, सर-ब-सर : पूरी तरह से  ~ संजय गार्गीश ~