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Is your love true?

  Public parks and parked cars are increasingly becoming hotbeds of obscenity much to the chagrin of common folk.  About thirty years ago, the simple act of publicly holding hands of a boyfriend / girlfriend tantamount to extreme vulgarity.  However in the contemporary times, things have changed drastically.  Yesterday while returning from my evening walk I saw a beautiful girl and a sturdy boy in their twenties, intimately kissing and caressing each other in a dark corner of a public park.  Seeing me the young couple ceased their pursuits but didn't look shamefaced.  The girl's face looked somewhat familiar, I was however not able to place her.  The girl however recognized me, came up to me and pleaded, "Uncle please don't tell my father about this."  With the garden pole light now directly on her face, I at once recognized her, "Beta, if I'm not wrong, you are Mr Chopra's daughter."  "Yes uncle." she said in a subdued voice.  "Be...

क्या संसार छोड़ना सही है?

  ◦•●◉✿  क्या संसार छोड़ना सही है?  ✿◉●•◦ "सर, जो लोग संसार को छोड़कर, अपने परिवार से विमुख हो कर संयास लेते हैं, क्या यह सही है?" एक महिला जिज्ञासु ने मुझसे पूछा  "मेरी समझ में इस संसार में सिर्फ तीन ही क़िस्म के लोग होते हैं :  (क) संसार को पकड़ने वाले।  (ख) बिना वैराग्य संसार से भागने वाले।  (ग) सोच समझकर संसार को छोड़ने वाले।  जो लोग संसार को पकड़ लेते हैं, वे बेहद नादान होते हैं। उन्हें इस बात का भी इल्म नहीं होता कि उनके सभी दुखों का एक ही कारण है - उनकी सांसारिक वस्तुओं, रिश्तों में आसक्ति होना।  जो सांसारिक वस्तु या रिश्ता शुरुआत में कुछ खुशी का एहसास देता है वही आख़िरकार बेशुमार दुखों-तकलीफ़ों को भी पैदा करता है।  कुछ लोग बिना किसी अनासक्ति के - अक्सर अपनी ज़िम्मेदारियों से भाग कर, अलग से अपने आलीशान डेरे बना लेते हैं।  पर यक़ीन मानिये, संसार उनके ज़हन में हमेशा रहता है।  ऐसे ही फ़रेबी अवाम को बेवकूफ़ बनाकर महल नुमा डेरों में अय्याशीयाॅं करते हैं।  बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें यह इल्म हो जाता है कि सांसारिक रिश...

कोई भी नास्तिक नहीं है

गत शनिवार अध्यात्मिक जिज्ञासुओं से बातचीत के दौरान मै उन्हें संसार के सिद्धांतों के बारे में समझा रहा था।  "देखो, संसार का एक अहम सिद्धांत है कि जो चीज़ जहाँ से उत्पन्न होती है, उसका उसी की ओर खिचाव रहता है।  यानि अंश का अपने अंशी के प्रति स्वभाविक आकर्षण होता है। अंश अपने अंशी से मिल कर एक होना चाहता है ताकि उसके गुण उसे मयस्सर हो सके।  मसलन, सभी नदियाँ समंदर से पैदा होती है (समंदर के पानी से भाप बनती है जो बादलों और फिर नदियों में तबदील होती है)।  हर नदी अपने जन्मदाता यानि समंदर की ओर भागती है। उसकी उथल-पुथल तभी शांत होती है जब वह समंदर में खो जाती है और उसका गुण यानि खारापन प्राप्त कर लेती है।" एक जिज्ञासु ने मुझसे पूछा, "सर, कुछ लोग भगवान के अस्तित्व को नहीं मानते यानि नास्तिक होते है ऐसा क्यों?  क्या सबूत है कि हम भगवान के अंश है और उनका सानिध्य चाहते है?"  "आमतौर पर जो लोग सांसारिक सुखों से घिरे रहते है - पैसा, शोहरत, ऊंचे पद में आसीन होते है, वे नास्तिक होते है।  जैसे माँ अपने बच्चे को कुछ खिलौने दे देती है ताकि बच्चा खिलौनों में मशगूल रहे और वह...

धारणाएँ बनाना गलत है

  ◦•●◉✿  धारणाएँ बनाना गलत है  ✿◉●•◦ कुछ लोगों की आदत होती है कि वे किसी खास धर्म या जाति के साथ कुछ खास गुण जोड़ देते हैं।  उदाहरण के लिए, वे मानते हैं कि सभी मारवाड़ी धन के लालची होते हैं या सभी ब्राह्मण हिंदू शास्त्रों के अच्छे जानकार होते हैं और स्वभाव से सौम्य होते हैं। मैंने अपने जीवन में बहुत से ऐसे भी मारवाड़ी देखे हैं जिनका दिल बहुत बड़ा था, बेशुमार दान-पुण्य करते थे। यह धारणा भी बेबुनियाद है, खासकर आज कल के दौर में, कि सभी ब्राह्मण शांत स्वभाव के होते हैं।  इसके विपरीत, मैंने एक लोकप्रिय कहावत सुनी है :  ब्राह्मणों के पूत  कोई जिन्न कोई भूत  शातिर होते बहुत   सामान्यीकरण करना या धारणाएँ बनाना अकलमंदी नहीं है।  मुझे याद है कुछ समय पहले मेरे एक जानकार को वहम हो गया कि मुझे ज्योतिष का इल्म है।  उन्होंने कहा, "शर्मा जी, आप ब्राह्मण हो। आप भगवान श्री कृष्ण जी के गुरु और ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता महर्षि गर्गाचार्य जी के कुल में पैदा हुए हो। इसलिए मुझे यकीन है कि आपको ज्योतिष के बारे में अवश्य जानकारी होगी। कृपया आप मेरी हस्...

कुछ सवाल और उनके जवाब श्रंखला १

  ✿   कुछ सवालों के जवाब श्रंखला १   ✿  ●◉✿ दूसरों के दुखों का कारण ना बनो ✿◉●  आज के दौर में यह बेहद अहम हो जाता है कि हम खुद को पूरी तरह से स्वस्थ रखे।  हमें ना केवल अपने शरीर पर बल्कि अपनी  मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास पर भी तवज्जोह देना चाहिए।  एक साधक के लिए मुक़म्मल तौर से स्वस्थ होना बहुत लाज़मी है।  युवा साधकों से बातचीत के दौरान मुझसे कई सवालात किए गए।  अपनी अगली कुछ पोस्टों में मै उनमें से कुछ सवाल और दिए गए जवाबों के बारे में लिखूँगा।  सवाल  : "सर, आपको किस चीज से सबसे ज़्यादा डर लगता है? "क्या आपको मौत से डर लगता है?" जवाब : "मौत का ख़ौफ़ मेरे लिए इतना बड़ा नहीं है। अगर आप के मुताबिक़ मौत का मतलब जिस्म का नष्ट होना है तो हमारा जिस्म तो वैसे भी रोज़ ज़रा ज़रा मर ही रहा है।  वैज्ञानिकों के मुताबिक़ हमारी कोशिकाएं (human cells) कुछ हफ्ते तक ही जिंदा रहती है। उसके बाद ये मर जाती हैं और नई कोशिकाएं इनकी जगह लेतीं हैं।  जैसे हमारी त्वचा की कोशिकाएं (skin cells) की मियाद तकरीबन तीन हफ्ते होती है। ...

Importance of human body.

While explaining the importance of human body to a motley bunch of spiritual seekers, I said, "Though human body is the dirtiest and most useless thing in this world, it is also the body that is most sought after.  Folks, my words may appear paradoxical to you."  "Exactly sir. Kindly elaborate." someone from the group quipped.  "You see, there are nine ways to enter human body, or for that matter most of the living beings' bodies.  These nine doors or openings of the body, also known as "Navdwara" are - two eyes, two ears, two nostrils, the mouth, the anus, and the genitalia.  Just observe. From all these nine openings only foul fluids and wastes flow out, nothing else!  In essence this body is nothing but a bag full of faeces and urine." I said.  "But sir, how can you say that human body is the most useless thing." said a middle aged bearded guy.  "Sir, human body is the most useless thing because even after death, the bodies ...

शायर

 कुछ हक़ीक़त थी कुछ अफ़साना था,  कुछ अपना था कुछ बेगाना था,  सब कुछ ही मगर मुझे सुनाना था।  सोतों को जगाना था,  रोतों को बहलाना था,  बहुतों को ढांढस बंधाना था।  अश्कों को अपने अपनाता हूँ,  लफ़्ज़ों से गमों को सजाता हूँ,  नग्में बना उन्हें गाता हूँ।  सुख-दुख खुद से ही मनाता हूँ,  कहाँ से कहाँ पहुँच जाता हूँ,  मैं शायर कहलाता हूँ।  ~ संजय गार्गीश ~