मग़रूरी बे-बुनियाद है

 ◦•●◉✿   मग़रूरी बे-बुनियाद है   ✿◉●•◦



अमूमन दो चीज़ें पर मै लोगों से, ख़ासकर अपने अज़ीज़ों से बहस नहीं करता : पॉलिटिक्स और धर्म। 


दोनों ही विवाद पैदा करती है, दोस्ती को दुश्मनी में तब्दील कर देती है। 


लेकिन कई दफ़ा हालात मजबूर कर देते है कि मैं हकीकत से रूबरू करवाऊं। 


कल अचानक मेरी मुलाकात एक जानकार, जो एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी है, से मुद्दत बाद हुई। 


बातचीत के दौरान उन्होंने शेखी बघारी, "शर्मा जी, मेरी समझ में नहीं आता कि लोग अपना कीमती समय पूजा-पाठ करने में क्यों बरबाद करते हैं। मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता, न ही मैंने कभी किसी पूजा-पाठ स्थल पर जाकर इबादत की है। फिर भी मेरे पास ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के लिए जरूरी हर चीज़ मौजूद है। मैंने ये सब अपनी कोशिशो से हासिल किया है। मैं "सेल्फ मेड मैन" हूँ।" उन्होंने अपने सीने को फुला कर कहा 


मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा। 


लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने फिर वही मुद्दा छेड़ दिया, "शर्मा जी, सर्वोच्च शक्ति नाम की कोई चीज़ नहीं होती। यह मूर्खों की जमात द्वारा बनाया गया वहम है। क्या आप तथाकथित सर्वोच्च शक्ति के अस्तित्व में विश्वास करते हैं?" 


मैंने उसके सवाल को अनसुना कर दिया। 


लेकिन अचानक मैंने उसकी तरफ देखा, पाया कि उनके बाएं हाथ की दो उंगलियां गायब थीं। मैंने उनसे इस बारे में पूछा।


"शर्मा जी, करीब एक साल पहले मैं एक शादी में शामिल होने जा रहा था। रास्ते में मैंने पेशाब करने के लिए अपनी कार रोकी। पेशाब करते समय पता नही कहाँ से एक काले-हरे रंग का कीड़ा उड़ता हुआ आया और मेरी उंगलियों को काट लिया, मेरी उंगलियां सूज गईं। मैं इलाज के लिए कई डॉक्टरों से मिला, मुम्बई भी गया। लेकिन कुछ फायदा ना हुआ। आखिरकार उंगलियां काटनी पड़ीं।


"मुझे इसके लिए खेद है। लेकिन आप पेशाब करने के लिए उस जगह ही क्यों रुके? आपको एक उचित सार्वजनिक शौचालय के आने का इंतजार करना चाहिए था।" मैंने कहा 


"पर प्रेशर बहुत था।" 


"यानि आप कहना चाहते है कि यह दुख आपके ना चाहने के बावजूद भी आया, इसके लिए आपको कोशिश नहीं करनी पड़ी।" मैंने उनकी ओर देख कर कहा 


" शर्मा जी, आप कहना क्या चाहते हो?" 


"साहब, जब दुख आपकी वज़ह से नहीं आया तो फिर आप यह कैसे कह सकते है कि आपको सुख आपकी कोशिशों से मिला। आपकी मग़रूरी बे-बुनियाद है। हकीकत यह है कि आप महज़ कठपुतली हो, आपकी डोर तो कोई और ही पकड़े हुए है।" 



~ संजय गार्गीश ~

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