क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
कुछ समझ ना आया।
चंद सांसों की ख़ातिर
जिंदगी को बेच आया।
खुदी को मिटा कर
मैंने ख़ुद को पाया।
कहीं और जाया जाए
जहाँ है देखा दिखाया।
मेरे ख़्याल और अल्फ़ाज़
बस यही मेरा सरमाया।
जब सब जगह वो समाया
कौन अपना कौन पराया।
खुदी : अहंकार, सरमाया : धन-दौलत
~ संजय गार्गीश ~
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