ज़िंदगी का "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन


महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया, "हे युधिष्ठिर, बताओ इस संसार में सबसे अजीब बात क्या है?" 


परमज्ञानी युधिष्ठिर ने जवाब दिया, "हे यक्ष, यह संसार मृत्युलोक है। यहाँ हर चीज़ नाश्वान है। हर किसी को एक निश्चित दिन मृत्यु का ग्रास अवश्य बनना है‌। हर शख़्स दूसरों की मौतें देख रहा है पर उसे यह वहम है कि वह कभी नहीं मरेगा। यही सबसे अजीब बात है।" 


हाल ही में हुई दर्दनाक वारदातें हमें फिर से आगाह करती है कि मौत ना उम्र देखती है, ना ज़ात, ना रूतबा। 


जिस्म की मौत अटल सत्य है। इसमे कोई शक नहीं है। 

मेरे कई अज़ीज़ों ने मेरे सामने, मेरी ही बाहों में अपने शरीर छोड़े। 


बेहद ज़रूरी यह जानना है कि रही-सही ज़िंदगी को सही तरीके से कैसे जिएं। 


अर्थशास्त्र में एक शब्दावली है "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन"। इसका मतलब है संसाधनों का सबसे अच्छा, सबसे प्रभावी उपयोग करना ताकि लाभ ज़्यादा से ज़्यादा प्राप्त हो और नुकसान कम से कम। 


ठीक ऐसे ही हमें ज़िंदगी का भी "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन" करना चाहिए ताकि हमें ज़्यादा से ज़्यादा नफ़ा मिल सके। 


कुछ लोगों को यह ग़लत-फ़हमी है कि जिंदगी का "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन" खाने-पीने, मौज-मस्ती, फ़ालतू घूमने-फिरने से ही मुमकिन है। ऐसा हरगिज़ नहीं है। हर सांसारिक ऐश-ओ-आराम, मौज आखिरकार दुख मे ही तब्दील होती है। 


मेरा मानना है कि जिंदगी का "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन" सिर्फ दो ही तरीकों से हो सकता है : 


(क) खुद को जानने से, अपने असली अस्तित्व को पहचानने से। खुद को जानने से आवागमन से, दुखों से, निजात मिलेगी। दोबारा किसी माँ (यह ज़रूरी नहीं कि मनुष्य माँ ही मिले) के गर्भ में उल्टा नहीं लटकना पडेगा। 


(ख) निस्वार्थ भाव से जीवों की सेवा करने से - पैसे से या वक़्त देकर। 


भगत कबीर दास जी ने अपने एक ख़ूबसूरत दोहे में फ़रमाया है : 


कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये 

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे, जग रोये


जग वाकई रोता है उस शख़्स के लिए जिसने अपनी ज़िंदगी का "ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन" किया। 


~ संजय गार्गीश ~

Comments

Popular posts from this blog

Three S Formula For A Happy Life.

One only juggles between two different dreams.

Sometimes letting go is the best course of action.