ज़िंदगी नाम है चलते ही रहने का

 


ज़हन में ज़र्रे ज़र्रे के

यूॅं उतरना चाहता हूँ। 

हवाओं में ख़ुशबू की तरह

मैं महकना चाहता हूँ। 


मिलने की ख़ुशी हो

ना खोने का कोई ग़म। 

इस कदर जहाँ से मरासिम

मैं रखना चाहता हूँ। 


दौलतमंद हो कर रहना

दुनिया में अच्छा है। 

ग़ैरतमंद हो कर मगर

मैं जीना चाहता हूँ। 


थक गया हूँ चलते चलते

अब थमना चाहता हूँ। 

भर लो बाॅंहों में मुझे

मैं पिघलना चाहता हूँ। 


ज़िंदगी नाम है चलते ही 

रहने का। 

सफ़र यह वापसी का है 

मैं कहना चाहता हूँ। 


मरासिम : संबंध, ग़ैरतमंद : स्वाभिमानी




~ संजय गार्गीश ~

Comments

Popular posts from this blog

Three S Formula For A Happy Life.

One only juggles between two different dreams.

Sometimes letting go is the best course of action.