तुममे पिघल कर तरना चाहता हूँ

 ✿ तुममे पिघल कर तरना चाहता हूँ ✿



ना मेरा आकार 

ना मुझमें विकार 

एक शरर हूँ मैं

कब से बेक़रार  


सफ़र दर सफ़र 

कर रहा हूँ 

जिस्म हज़ारों 

धर रहा हूँ  

शक्लें कई कई 

बदल रहा हूँ  


अब अंजाम ए सफ़र 

चाहता हूँ 

थक गया हूँ थमना 

चाहता हूँ 

तुममे पिघल कर तरना 

चाहता हूँ 



शरर : चिंगारी 

अंजाम ए सफ़र : सफ़र का अंत 



~ संजय गार्गीश ~

Comments

Popular posts from this blog

Importance Of Meditation.

A Peep Into The Life Of A Writer

One only juggles between two different dreams.