दोस्त यही जिंदगानी है
बस इतनी सी कहानी है
ये दुनिया बहता पानी है।
जो चीज़ तूने सच मानी है
सच पूछो सब फ़ानी है।
चल सूरज की बात करें
रात सियाह बितानी है।
वज़ह हर वैराग की
पीड़ा कोई पुरानी है।
इमारत टूटी सजानी है
दोस्त यही ज़िंदगानी है।
फ़ानी : नश्वर, सियाह : काला रंग
~ संजय गार्गीश ~
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