Posts

Showing posts from March, 2025

मेरी सत्य की ख़ोज २

  अपने अध्यात्मिक सफ़र के दौरान मै ऐसे कई साधुओं, भिक्षुओं, मौलवियों, फ़ादरों से मिला जिन्होंने मुझे तो जिंदगी का उद्देश्य बे-लगाव रहना बताया पर मैंने उन्हें अपने धर्म से, अपने परिवार से, अपने संकीर्ण विचारों से, अपनी बेशकीमती चीज़ों से लगाव करते हुए पाया।  ऐसे लोग ख़ुद तो भ्रमित होते ही है, दूसरों को भी अपने निजी स्वार्थ की ख़ातिर गुमराह करते है।  एक ऐसे महानुभाव से भी मुलाक़ात हुई जिन्हें अपने धर्म की क़िताब मुँह-ज़बानी याद थी। जब मैंने उनसे जीवन के मंसूबे के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "ख़्वाहिशों का ख़ात्मा करना"। मुलाक़ात के दौरान एक शागिर्द चाय लेकर आया। चाय में शक्कर कम थी पर मैंने ज़यादा गौर नही किया। पर महानुभाव ने शागिर्द पर बेशुमार गुस्सा किया। यह देख कर मैं समझ गया कि मुहतरम की मीठी चाय की ख़्वाहिश भी अभी बरकरार है। मैंने उनसे रूख़सत ली।  धर्मग्रंथों को पढ़ने से, ज़कात या दान देने से, धर्म स्थलों पर जाने से आप अच्छे इंसान तो बन सकते है पर विश्वास रखें, आप को सत्य की प्राप्ति हरगिज़ नहीं हो सकती।  सांसारिक ज्ञान साझा किया जा सकता है परन्तु विडम्बना...

मेरी सत्य की ख़ोज १

  कुछ अध्यात्मिक दोस्तों, स्टूडेंट्स ने काफ़ी समय पहले फ़रमाइश की थी कि सत्य की जुस्तुजू के दौरान हुए अपने तजुर्बों को शेयर करूँ।  लेकिन अपनी जीवन संगिनी के बेवक़्त इंतिक़ाल की वज़ह से मैं उस वक़्त शेयर नहीं कर पाया।  अब मैं थोड़ा संभला हूँ, सो आप सभी के साथ अपने अनुभव साझा कर रहा हूँ।  मुद्दा लंबा और गहरा है, इसलिए मैं दो पोस्टें लिखूँगा।  "ज़िंदगी के मायने क्या है? "क्या खाना, पीना, सोना, सम्भोग करना ही जीवन का मक़सद है? ऐसे कई सवालों का सिलसिला मेरे ज़हन में उस वक़्त शुरू हुआ जब मैं काॅलेज में तालीम हासिल कर रहा था।  दोस्तों, इन सवालों के जवाबों की तलाश में या फिर यूँ कहें कि सत्य की ख़ोज में मैं दर-ब-दर भटका।  सभी मज़हबों के धर्म गुरुओं, साधकों से मुलाक़ात की। धर्म स्थलों पर गया, तस्सली-बख्श जवाब मयस्सर ना हुए।  पंजाब में एक नामी-गिरामी स्वामी एक नामचीन डेरे की अध्यक्षता कर रहे थे।  हज़ारों की तादाद में लोग उनके प्रवचन सुनने आते थे।  एक बार मैं भी उनके प्रवचन सुनने गया और प्रवचन के पश्चात उनसे कुछ समय मांगा।  उन्होंने कुछ देर मे...