मेरी सत्य की ख़ोज २
अपने अध्यात्मिक सफ़र के दौरान मै ऐसे कई साधुओं, भिक्षुओं, मौलवियों, फ़ादरों से मिला जिन्होंने मुझे तो जिंदगी का उद्देश्य बे-लगाव रहना बताया पर मैंने उन्हें अपने धर्म से, अपने परिवार से, अपने संकीर्ण विचारों से, अपनी बेशकीमती चीज़ों से लगाव करते हुए पाया।
ऐसे लोग ख़ुद तो भ्रमित होते ही है, दूसरों को भी अपने निजी स्वार्थ की ख़ातिर गुमराह करते है।
एक ऐसे महानुभाव से भी मुलाक़ात हुई जिन्हें अपने धर्म की क़िताब मुँह-ज़बानी याद थी। जब मैंने उनसे जीवन के मंसूबे के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "ख़्वाहिशों का ख़ात्मा करना"। मुलाक़ात के दौरान एक शागिर्द चाय लेकर आया। चाय में शक्कर कम थी पर मैंने ज़यादा गौर नही किया। पर महानुभाव ने शागिर्द पर बेशुमार गुस्सा किया। यह देख कर मैं समझ गया कि मुहतरम की मीठी चाय की ख़्वाहिश भी अभी बरकरार है। मैंने उनसे रूख़सत ली।
धर्मग्रंथों को पढ़ने से, ज़कात या दान देने से, धर्म स्थलों पर जाने से आप अच्छे इंसान तो बन सकते है पर विश्वास रखें, आप को सत्य की प्राप्ति हरगिज़ नहीं हो सकती।
सांसारिक ज्ञान साझा किया जा सकता है परन्तु विडम्बना यह है कि जो सत्य को जान चुका है वह मौन हो जाता है, चुप्पी साध लेता है क्योंकि सत्य के ज्ञान का वितरण नहीं किया जा सकता।
ऐसे अहल-ए-दिल यदि अपनी उंगली के इशारे से चांद दिखाने की क़ोशिश भी करेंगे तो यह पक्का है कि लोग उंगली को ही चांद समझ लेंगे।
जैसे साहिल तक पहुँचने के लिए कश्ती की ज़रूरत होती है वैसे ही सत्य को पाने के लिए संसार की अहम भूमिका है।
जो लोग संसार को बिना जाने संन्यास लेते है, संन्यास लेने के पश्चात भी उनका मन सांसारिक वासनाओं में ही उलझा रहता है, सत्य प्राप्ति तो बहुत दूर की बात है।
हर किसी को अपना सत्य स्वयं ही खोजना होगा, मनन करना होगा। और कोई विकल्प है ही नहीं।
बिजनेस इकनॉमिक में SWOT Analysis के बारे में पढ़ाया जाता है। इस तकनीक के ज़रिए हम कोई भी बिजनेस कार्य करने से पहले उस से उत्पन्न लाभ और हानियों का हिसाब लगाते है। यदि लाभ कम है और हानियाँ ज़्यादा, तो वह कार्य या गतिविधि नही की जाती।
ठीक उसी तरह से संसार में भी वही कार्य करें जिसका SWOT Analysis पाजिटिव है यानि लाभ ज़यादा और हानि कम, यह सिर्फ मनन के द्वारा ही संभव है। यही आपका सत्य है!
हो सकता है कि शुरुआत में सभी के सत्य अलग अलग हों पर अंततः सभी का सत्य एक दूसरे से हूबहू मेल खाएगा। यही अध्यात्म की ख़ूबसूरती है।
आख़िरकार सभी दरियाओं को एक दिन समंदर में ही मिलना है, समंदर ही तो बनना है।
~ संजय गार्गीश ~
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