क्या भगवान वाकई हैं?

 



कल शाम मेरी मुलाक़ात एक जानकार से हुई। गुफ़्तगू के दौरान उसने कहा, "शर्मा जी, मुझे भगवान या खुदा में कुछ भी यकीं नहीं है। मैं आज जो कुछ भी हूँ अपने दम से हूँ।" 


"तो फिर आपका जन्म भी आप ही के दम से हुआ होगा?" मैंने मुस्कुरा कर कहा 


कई दफ़ा मेरी मुलाक़ात ऐसे लोगों से होती है जो इस बात में फख्र महसूस करते है कि वे नास्तिक है। 


क्या वाकई भगवान या खुदा है या यह महज़ मन का वहम है। इस मुद्दे पर मैंने कई किताबें पढ़ी, चिंतन किया। 


आखिरकार मै इस नतीजे पर पहुँचा कि दो ही कारणों से कोई भी शख़्स सर्वोच्च शक्तिमान के अस्तित्व को नहीं मानता। या तो : 


(क) उसने जिंदगी मुकम्मल तौर से नहीं देखी या जी। 

(ख) उसने जिंदगी के विषय में मनन नहीं किया। 


सुप्रसिद्ध गज़ल गायक जगजीत सिंह जी ने एक बहुत ही अच्छा, मशहूर भजन गाया है - हे राम हे राम। जग में सांचों तेरो नाम, हे राम हे राम। 


क्या आपको पता है कि यह भजन उर्दू ज़ुबाँ के नामचीन शायर सुदर्शन फ़ाकिर जी ने लिखा है। शराब के बेहद शौकीन, सुदर्शन फ़ाकिर ने तमाम उम्र सिर्फ शराब और शबाब को ही तवज्जोह दी। लेकिन कुछ घटनाओं ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी और वह अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर हो गए। 


असदुल्लाह बेग ख़ां उर्फ मिर्ज़ा गालिब ने अपनी एक गज़ल में कहा है, "ना था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ ना होता तो ख़ुदा होता" यानि जब दुनिया में कुछ नहीं था, तब भी ख़ुदा मौजूद था और ख़ुदा हमेशा मौजूद रहेगा। 


वैज्ञानिकों की बात करें, तो मैंने देखा है कि "छोटे" वैज्ञानिक जिन्होंने अभी विज्ञान को पूरी तरह से नहीं समझा है, वे खुद को नास्तिक कहते है। लेकिन "बड़े" वैज्ञानिक, जैसे सर आइज़ैक न्यूटन, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की, ने कहा, "नास्तिकता बहुत मूर्खतापूर्ण है। जब मैं सौरमंडल को देखता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि पृथ्वी सूर्य से उचित दूरी पर है, ताकि उसे उचित मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश मिल सके। यह संयोगवश नहीं हुआ।" 


थॉमस माल्थस एक मशहूर ब्रिटिश अर्थशास्त्री थे जिन्होंने जनसंख्या की थ्योरी दी। माल्थस के मुताबिक़, जब इंसान खुद अपनी आबादी पर अंकुश नहीं लगाता तो "अदृश्य ताकतें" हस्तक्षेप करती है और प्राकृतिक आपदाओ जैसे बाढ़, भूकंप आदि से जनसंख्या को नियंत्रित करती है। 


ज़रा अपने इर्दगिर्द नज़र मारें। क्या यह करामात नही है कि नारियल के पेड़ समंदर के किनारे, नमकीन पानी को ग्रहण करते है लेकिन उनके अंदर पानी बेहद मीठा होता है? क्या यह करिश्मा नही है कि नालायक ओहदों पर विराजमान है, अच्छी खासी कमाई कर रहे है और काबिल लोग रोटी को भी मोहताज है? 


कोई तो है जो यह सब तमाशा कर रहा है! 



~ संजय गार्गीश ~ 




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