कोई भी नास्तिक नहीं है

गत शनिवार अध्यात्मिक जिज्ञासुओं से बातचीत के दौरान मै उन्हें संसार के सिद्धांतों के बारे में समझा रहा था। 

"देखो, संसार का एक अहम सिद्धांत है कि जो चीज़ जहाँ से उत्पन्न होती है, उसका उसी की ओर खिचाव रहता है। 
यानि अंश का अपने अंशी के प्रति स्वभाविक आकर्षण होता है। अंश अपने अंशी से मिल कर एक होना चाहता है ताकि उसके गुण उसे मयस्सर हो सके। 

मसलन, सभी नदियाँ समंदर से पैदा होती है (समंदर के पानी से भाप बनती है जो बादलों और फिर नदियों में तबदील होती है)। 
हर नदी अपने जन्मदाता यानि समंदर की ओर भागती है। उसकी उथल-पुथल तभी शांत होती है जब वह समंदर में खो जाती है और उसका गुण यानि खारापन प्राप्त कर लेती है।"

एक जिज्ञासु ने मुझसे पूछा, "सर, कुछ लोग भगवान के अस्तित्व को नहीं मानते यानि नास्तिक होते है ऐसा क्यों? 
क्या सबूत है कि हम भगवान के अंश है और उनका सानिध्य चाहते है?" 

"आमतौर पर जो लोग सांसारिक सुखों से घिरे रहते है - पैसा, शोहरत, ऊंचे पद में आसीन होते है, वे नास्तिक होते है। 

जैसे माँ अपने बच्चे को कुछ खिलौने दे देती है ताकि बच्चा खिलौनों में मशगूल रहे और वह अपना घर का काम कर सके, वैसे ही ऐसे लोगों को भगवान सांसारिक सुख प्रदान करता है ताकि ये उन्हीं में उलझे रहे। 

वेद कहते हैं कि भगवान जिन पर कृपा करता है, उन्हें मुफ़लिसी, दुख तकलीफ़े देता है ताकि उन्हें संसार से वैराग्य हो जाए और वे अपने अंशी की ओर धयान केंद्रित कर सके, भवसागर पार कर सके। 

इसी कारण कुंती ने भगवान कृष्ण से अपने लिए सिर्फ दुख मांगा क्योंकि भगवान का स्मरण सिर्फ दुख तकलीफ़ों में ही होता है, ऐशोआराम में नहीं। 

हमारे शास्त्र कहते है कि भगवान सच्चिदानंद है यानि सनातन (हमेशा रहने वाले) + चित्त (अनंत ज्ञान के भंडार) + आनंद (ना घटने वाले अनंत सुख के सागर) है। 

ये तीनों गुण हर शख़्स चाहता है। 

हर कोई चाहता है कि वह अनंत काल तक रहे, कभी ना मरे। मौत दहशत देती है, अस्पताल भरे रहते है। 

हर किसी को अनंत ज्ञान प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रहती है। कभी अपने व्यवसाय से संबंधित ज्ञान तो कभी अपने पड़ोसियों से संबंधित। 

हर इंसान हरदम सुख चाहता है। इंसान रोता है तो भी सुख के लिए क्योंकि रोने के पश्चात हल्का महसूस करता है। 

"हम सभी उपरोक्त तीनों गुण चाहते है। क्योंकि ये तीनों गुण अनंत मात्रा में हमें तभी मिल सकते हैं जब हम अपने अंशी का ध्यान करें और उनमें समा जाए।  इसलिए हम सभी आस्तिक है - प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से। इसलिए सही मायने में कोई भी नास्तिक नहीं है।" मैंने मुस्कुरा कर कहा 


~ संजय गार्गीश ~ 

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