चल उठ बिखरा घर संवार

पतझड़ हो या बहार, 

सावन की या फिर फुहार, 

मेरे मनवा मेरे यार, 

कर हर मौसम से प्यार, 

तेरे आसूॅंओं की धार, 

तेरे दर्दों का दयार, 

समझने को ना कोई तैयार, 

मत रो तू ज़ार-ज़ार, 

कर खुद पर ऐतबार, 

चल उठ बिखरा घर संवार। 


दयार : संसार 


~ संजय गार्गीश ~

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