"हमारा बार बार बार जन्म लेना ही दुखों का कारण है"

 




क्या मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य धनवान बनना, किसी महकमें में उच्चाधिकारी बनना या मौज-मस्ती करना है? 


हरगिज़ नहीं! 


मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य है - जीवन को इस तरह से जीना कि मृत्यु के पश्चात दोबारा जन्म ही ना लेना पड़े। 


पर क्यों? 


क्योंकि : 


(१) जन्म है तो बेशुमार दुख है। 


(२) जन्म है तो मृत्यु है। ना जाने हम कितने ही परिवारों में जन्म ले चुके हैं और मृत्यु के वक्त उन्हें रोते-बिलखते छोड़ कर कहीं और जन्म ले लेते हैं। 


यानि हमारा बार बार जन्म लेना ही अपने और दूसरों के दुखों का कारण है! 


अब आप पूछोगे कि क्या केवल मानव जीवन में ही बार बार जन्म से निजात मुमकिन है। 


जी हाँ। कयोंकि सिर्फ मनुष्य में ही "विवेक" है, अन्य जीवों में नहीं। 


केवल मनुष्य ही सही और गलत में फर्क कर सकता है, अपने भले बुरे का विचार कर सकता है। 


अब प्रशन यह आता है कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कैसे संभव है। 


हिंदू शास्त्रों के अनुसार मोक्ष प्राप्ति यानि जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति के तीन साधन है : 


(१) ज्ञान योग 

(२) भक्ति योग 

(३) कर्म योग 


हालांकि कलयुग में भक्ति योग ही सबसे सरल और सर्वश्रेष्ठ साधन है लेकिन अन्य धर्मों के लोग शायद इस पर अमल नहीं करेंगे और इसे सिर्फ हिंदू धर्म से जोड़ने की कोशिश करेंगे। 


कर्म योग का अभिप्राय है महज़ कर्म करना, बिना किसी अपेक्षा के। यानि निस्वार्थ भाव से सेवा करना। 


पर आजकल के युग में कोई विरला ही बिना किसी ग़रज़ के दूसरों के लिए कुछ कर सकता है। 


ज्ञान योग का मतलब है मनन करना। जब हम एकांत में बैठ कर सांसारिक रिश्तों और वस्तुओं के बारे में चिंतन करते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि इस भौतिक जगत में कुछ भी अपना या अपने लिए है ही नहीं! 


उदाहरण के लिए, हम अपने शरीर को तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं, बेशकीमती आभूषणों से इसका श्रंगार करते हैं पर फिर भी यह दगा दे जाता है, यह बुढ़ा हो जाता है, निर्जीव हो जाता है। 


जब हमारा शरीर ही हमारा नहीं है तो हम औरों से क्या अपेक्षा रख सकते हैं! 


आसक्ति - वस्तुओं के प्रति, जीवों के प्रति - ही  हमें बार बार जन्म लेने पर मजबूर करती है। 


आसक्ति के नाश से ही मोक्ष संभव है। 


बात सीधी सी है, जब हमारी किसी भी भौतिकी चीज़ में रूचि नहीं होगी तो फिर हमें भव्य बाज़ारों, शापिंग माॅलों में जाने की भी जरूरत नहीं है। 


वैसे ही यदि हमारी सांसारिक रिश्तों, वस्तुओं में आसक्ति नहीं होगी तो फिर हम यहाँ दोबारा नहीं आएंगे। हम फिर से जन्म नहीं लेंगे। 

हम जीवन-मृत्यु के चक्र से रिहा हो जाएंगे। 


इसी को मोक्ष या मुक्ति कहते हैं। 


इसी को भगवान बुद्ध ने निर्वाण कहा है। 



~ संजय गार्गीश ~

Comments

Popular posts from this blog

Three S Formula For A Happy Life.

Silent Lovers

True, Brave Sons Of The Soil