संन्यास क्या है
बेहद खुशी होती है जब देखता हूँ कि पढ़े लिखे नौजवान काॅरपोरेट सेक्टर के बड़े ओहदों को छोड़ कर अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहे है, अपने वजूद को जानने की क़ोशिश कर रहे है।
कल आश्रम में ऐसे ही एक नौजवान ने सवाल किया, "सर, मैंने यह महसूस किया है कि हर साल दूसरे मुल्कों के बाशिंदे भारत मे संन्यास लेने के लिए बेशुमार तादाद मे आते है और उन लोगों की संन्यास के लिए ईमानदारी काब़िल-ए-तारीफ है, हम से कई गुना ज्यादा है। ऐसा क्यों?"
"बेटा, सच्चाई यह है कि यहाँ बहुत ही कम लोग है जो हकीकत मे अध्यात्मिक है। ज्यादातर फरेबी है, गरीब घरों से है। इन्हों के लिए अध्यात्म रोज़ी-रोटी है, अय्याशी का साधन है। इन्हों के ज़हन मे हरदम संसार ही रहता है, ये सिर्फ सांसारिक वस्तुओं का ही मनन करते है।"
वास्तव मे संन्यास का मार्ग संसार से ही जाता है। बगैर संसार को समझे संन्यास लेना बेईमानी है।
अगर कोई सही मे संन्यासी होगा तो या तो वह अमीर और अक्लमंद होगा या सिर्फ अक्लमंद।
अमीर हो पर विवेकवान ना हो तो संन्यास नामुमकिन है।"
"वो कैसे सर?"
"इकोनॉमिक्स मे एक सिद्धांत है जिसे लागत-लाभ सिद्धांत या Cost-benefit principle कहा जाता है। इस सिद्धांत के मुताबिक, कोई भी कार्य करने से पहले उससे होने वाले नफे-नुकसानों को मद्देनजर रखा जाता है। कार्य करने का फायदा तभी है यदि नफा ज्यादा हो, नुकसान कम।
२०२५ के कुंभ के दौरान कई विदेशी रईसों ने संन्यास लिया और सनातन धर्म को अपनाया, मसलन स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स।
जिन्होंने संन्यास सवेच्छा से ग्रहण किया वे रईस होने के साथ साथ विवेकवान भी थे। उन्होंने संसार के समस्त सुखों को भोगा। देखा कि सांसारिक भोग भोगने मे नुकसान ज्यादा है, नफा मामूली सा और वो भी क्षणिक।"
"तो क्या संन्यास का मतलब है विशेष वेशभूषा पहना, जंगलों कंदराओं मे रहना।"
"बेटा, संन्यास का वेशभूषा और वीरान जगहों से कुछ भी लेना देना नही है। संन्यास के मायने है मन और इंद्रियों को काबू मे रखना ताकि खुद भी तकलीफ मे ना रहे और दूसरों के भी दुख का कारण ना बने।
संसार से नाममात्र रिश्ता रखना, कम से कम में गुज़र बसर करना ही संन्यास है।"
~ संजय गार्गीश ~
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