जादू और जादूगर में फ़र्क़

 


यदि हमारे मुल्क में रिश्वतखोरी, बदचलनी, चोरियों ठगीयों में बेइंतहा, बेखौफ इज़ाफ़ा हो रहा है तो इसकी अहम वज़ह है स्कूलों, कालेजों में अध्यात्मिक शिक्षा का ना होना। 


कालेजों, यूनिवर्सिटीयों की पढ़ाई ख़ुद-ग़रज़ों की भीड़, रूपये छापने की मशीनें तो तैयार सकती है, पर नेक इंसान हरगिज़ नहीं। 


मेरी कोशिश रहती है कि मैं नई नस्ल को अध्यात्म की जानकारी दे सकूँ ताकि उसे सही गलत का इल्म हो। 

शायद इस तरह मैं मुल्क के प्रति अपने फर्ज़ को अदा कर सकूँ। 


कल शाम जब मैं सैन्य अधिकारियों के बच्चों को संबोधित कर रहा था तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति खड़ा हो कर बोला, "सर, जिंदगी मुझ पर बेशुमार मेहरबान रही है। मै भारत सरकार में गजेटेड ऑफिसर हूँ, चंडीगढ़ में दो कोठियां है, बच्चे मुम्बई, चेन्नई में अच्छे ओहदों पर है। धन-दौलत सब कुछ है। फिर भी जिंदगी में बहुत सूनापन है। ऐसा क्यों?" 


"सर, ऐसा इसलिए क्योंकि आपने सिर्फ भ्रम को ही पकड़ रखा है - अच्छी नौकरी, बच्चे, धन-दौलत इत्यादि। 

जब तक आप सच्चाई से अवगत नहीं होंगे, आपकी ज़िंदगी में खालीपन ही रहेगा।" 


"तो सच्चाई क्या है, सर?" 


"जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी के अद्वैत वेदांत के मुताबिक़, "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या" यानि "ब्रह्म" या "परमात्मा" ही केवल सत्य है और "जगत" या "संसार" मिथ्या या भ्रम।" 


"यह आप कैसे कह सकते हो। क्या सुबूत है कि संसार मिथ्या है?" 


"लाखों करोड़ों बाशिंदे इस दुनिया में है। क्या किसी एक की भी शक्ल या सीरत दूसरे से हुबहू मिलती है? क्या किसी के फिंगरप्रिंट, आंखों के स्कैन दूसरों से मेल खाते है। क्या यह जादू नहीं! 


एक छोटा सा बीज अपने आप विशाल वृक्ष बन जाता है। 

एक नन्ही सी "बूंद" खुद ब खुद सुंदर बच्चे में तब्दील हो जाती है। 

क्या यह जादू नहीं! 


नारियल के पेड़ समंदर का खारा पानी पीते है पर नारियल पानी बेहद मीठा होता है। क्या यह जादू नहीं!" मैंने कहा 


"सर, आप बिल्कुल सही कह रहे हो। मैंने ये सब कुछ कभी सोचा ही नहीं, कभी गौर ही नही किया। यहाँ तो हर तरफ जादू हो रहा है।" 


"जैसे जादू के शो में जादूगर भ्रम पैदा करता है वैसे ही ये जादुई संसार "ब्रह्म" की पैदाइश है। निरंतर परिवर्तनशील जादुई संसार को अपना मानना मूर्खता है। जादूगर से रूबरू हो कर ही जीवन का सूनापन खत्म होता है। यही अध्यात्म है।" 


"सर, हम जादूगर को कहाँ खोज सकते है। जादूगर का रूप आकार कैसा होता है।" 


"वोह जादूगर कोई और नही, आप ही हो। अपने आप को जानना ही अध्यात्म है।" मैंने मुस्कुरा कर कहा 



~ संजय गार्गीश ~ 

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