कल शाम मेरी मुलाक़ात एक जानकार से हुई। गुफ़्तगू के दौरान उसने कहा, "शर्मा जी, मुझे भगवान या खुदा में कुछ भी यकीं नहीं है। मैं आज जो कुछ भी हूँ अपने दम से हूँ।" "तो फिर आपका जन्म भी आप ही के दम से हुआ होगा?" मैंने मुस्कुरा कर कहा कई दफ़ा मेरी मुलाक़ात ऐसे लोगों से होती है जो इस बात में फख्र महसूस करते है कि वे नास्तिक है। क्या वाकई भगवान या खुदा है या यह महज़ मन का वहम है। इस मुद्दे पर मैंने कई किताबें पढ़ी, चिंतन किया। आखिरकार मै इस नतीजे पर पहुँचा कि दो ही कारणों से कोई भी शख़्स सर्वोच्च शक्तिमान के अस्तित्व को नहीं मानता। या तो : (क) उसने जिंदगी मुकम्मल तौर से नहीं देखी या जी। (ख) उसने जिंदगी के विषय में मनन नहीं किया। सुप्रसिद्ध गज़ल गायक जगजीत सिंह जी ने एक बहुत ही अच्छा, मशहूर भजन गाया है - हे राम हे राम। जग में सांचों तेरो नाम, हे राम हे राम। क्या आपको पता है कि यह भजन उर्दू ज़ुबाँ के नामचीन शायर सुदर्शन फ़ाकिर जी ने लिखा है। शराब के बेहद शौकीन, सुदर्शन फ़ाकिर ने तमाम उम्र सिर्फ शराब और शबाब को ही तवज्जोह दी। लेकिन कुछ घटनाओं ...