कुछ सवाल और उनके जवाब श्रंखला १
✿ कुछ सवालों के जवाब श्रंखला १ ✿
●◉✿ दूसरों के दुखों का कारण ना बनो ✿◉●
आज के दौर में यह बेहद अहम हो जाता है कि हम खुद को पूरी तरह से स्वस्थ रखे।
हमें ना केवल अपने शरीर पर बल्कि अपनी मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास पर भी तवज्जोह देना चाहिए।
एक साधक के लिए मुक़म्मल तौर से स्वस्थ होना बहुत लाज़मी है।
युवा साधकों से बातचीत के दौरान मुझसे कई सवालात किए गए।
अपनी अगली कुछ पोस्टों में मै उनमें से कुछ सवाल और दिए गए जवाबों के बारे में लिखूँगा।
सवाल : "सर, आपको किस चीज से सबसे ज़्यादा डर लगता है? "क्या आपको मौत से डर लगता है?"
जवाब : "मौत का ख़ौफ़ मेरे लिए इतना बड़ा नहीं है। अगर आप के मुताबिक़ मौत का मतलब जिस्म का नष्ट होना है तो हमारा जिस्म तो वैसे भी रोज़ ज़रा ज़रा मर ही रहा है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक़ हमारी कोशिकाएं (human cells) कुछ हफ्ते तक ही जिंदा रहती है। उसके बाद ये मर जाती हैं और नई कोशिकाएं इनकी जगह लेतीं हैं।
जैसे हमारी त्वचा की कोशिकाएं (skin cells) की मियाद तकरीबन तीन हफ्ते होती है। उपरांत ये नष्ट होती है, नई कोशिकाएं इनका स्थान लेती है।
मुझे सबसे ज़्यादा डर लगता है फिर से किसी माँ के पेट में उल्टा टंगना यानि फिर से जन्म लेना, फिर से मरना।
फिर से अपने अज़ीज़ों को रोते धोते छोड़कर जाना, उनके दुखों का सबब बनना।
और यह भी ज़रूरी नहीं कि अगली दफ़ा माँ इंसान ही मिले, वह कोई भी पशु, परिंदा या कीड़ा हो सकती है।
यदि ऐसा हुआ तो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि सिर्फ मनुष्य के पास ही विवेक है जिसके ज़रिए उसे संसार से निजात मिल सकता है।
मैं फिर से दूसरों के दुखों का कारण नहीं बनना चाहूँगा, ना जिंदगी रहते ना जिंदगी के बाद।
~ संजय गार्गीश ~
Comments
Post a Comment