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कुछ दोहे

 सहरा ढूँढ़ता पानी और समंदर माँगे प्यास,  सब के दिल में आस है, सब के सब उदास।  मन के पीछे जो लगे, मंज़िल मिले ना मुक़ाम,  मन को साधा जिसने, दुनिया उसकी ग़ुलाम।  सागर और मिट्टी से, मेरा रिश्ता बड़ा है ख़ास,  सागर से उभरी लहर हूँ मैं, मिट्टी मेरा लिबास।  खोज में जिसकी भटक रहा, कर रहा प्रबल प्रयास,  वह ख़ुदा तुम्हारे दिल में है, वह ख़ुदा तुम्हारे पास।  सहरा : रेगिस्तान ~ संजय गार्गीश ~