Posts

Showing posts from May, 2022

संसार से हमारे ताल्लुक़ात.

 संसार से हमारे ताल्लुक़ात तीन ज़रियों से हो सकते है :  (क) हम संसार को पकड़े रखें.  (ख) हम संसार को छोड़ दें. (ग) या फिर संसार हमसे छूट जाए.  अक़्सर यह वहम हो जाता है कि संसार हमें पकड़ता है, पर हकीकत यह है कि हम ही सांसारिक चीज़ों की ओर आकर्षित होते हैं, इनके पीछे भागते हैं.  बिजली की तार हमारी ओर चलकर नहीं आती, हम ही उससे उलझते हैं और फिर हमें नुक़सान पहुँचता है!   कुछ लोग बगैर किसी सोच समझ के संसार को छोड़ कर वीरान जगहों में डेरा डाल लेते हैं.  पर यक़ीन मानिये, संसार इनके ज़हन में ही रहता है.  ऐसे ही फ़रेबी अपने आलीशान डेरों में हरम रखते हैं, नापाक तरीकों से दौलत जमा करते हैं.  मुनासिब यही है कि संसार हमसे अपने आप ही छूट जाए.  संसार तभी छूटता है जब यह इल्म हो जाए कि सांसारिक रिश्तों, वस्तुओं से मिलने वाला सुख क्षणिक है, फ़रेब है.  आम जब पक जाता है तो वह ख़ुद ब ख़ुद टहनी से जुदा हो जाता है.  ठीक ऐसे ही जब श्री हरि कृपा से यह एहसास हो जाए कि संसार में सुख कम लेकिन दुख, धोखे़ और परेशानियाँ ज़्यादा है, तो संसार स्वत: ही छूट जाता है.  शायद इसीलिए सन्यासी पके हुए आम के रंग के यानि भगवा र

The Objectives Of Spiritual Life And Material Life.

  I have observed that achieving material objectives require less efforts than attaining spiritual goals.  It is no child's play to withdraw one's senses from sense objects.  In deep sleep, senses are withdrawn from sense objects automatically and one enjoys bliss, albeit for a brief period.  As soon as one awakens, one's senses again start running after the sense objects.  A wise monk understands that the happiness provided by sense objects is fleeting but ultimately they inflict much more sorrows, diseases.  Through continuous practice and wisdom, a monk is able to withdraw his senses from the sense objects, consciously.  He then channelizes all his thoughts in the direction of  Absolute Reality, who is the fountainhead of everlasting joy.  That's why a yogi remains perennially ecstatic, experiences unpolluted joy continually.  A monk has to meditate deeply, introspect a lot so as to mould his mind in such a way that it remains balanced in pleasure and pain, honour an